मीडिया ने शुरुआत से ही देश के राजनीतिक आर्थिक सामाजिक संास्कृतिक व धार्मिक उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। जहां मीडिया अपनी प्रकृति के अनुसार लाभ पहंुचा कर आम जन मानस को विकास की अग्रसर कर रहा है वहीं पिछले एक दशक से मीडिया चरित्र में व्यापक परिवर्तन देखने को मिला है। आज इस तरह से मीडिया धर्म को एक हथकन्डे के रूप में अपना रहा है उससे आम जनता के मनोंवृत्ति पर गहरा प्रभाव पड रहा है। जिस तरह मध्य युग में नाथ सिद्धों के यहां तंत्र-मंत्र की असंवैधानिक रूढ़ियां विद्यमान थी और आम जनता में जंतर-मंतर का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता था उसी तरह वर्तमान मीडिया में भी भक्ति, साधना, आस्था, राशिफल, भविष्यफल, टैरोकार्ड का बोलबाला हर तरफ नजर आ रहा है। हनुमान कवच, धनलक्ष्मी यंत्र, श्री यंत्र, सिद्ध अंगूठी, नजर सुरक्षा कवच आदि माध्यमों से जो मायावी संसार गढ़ने का प्रयास किया जा रहा है वह भ्रम पैदा कर रहा है। खासकर देखा जाए तो खबरिया चैनल इस मामले में कोसों दूर निकल चुके है। राष्ट्रीय चैनलों से लेकर क्षेत्रीय व स्थानीय चैनल तक दर्शकों को अपने मोहपाश में बांध लेने को आतुर नजर आ रहे हैं।
कहीं हनुमान के नाम पर तो कहीं शिव और काली के नाम पर लोगों को कीर्तन कराते नजर आ रहे हैं। ज्योतिष, भविष्यवाणी योगासन एवं घटनाओं को रहस्यमय बनाकर दिखाना मीडिया की प्रवृति बन गई है। कहीं तीन देिवयां तो कहीं जटाधारी बाबा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते नजर आ रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि टीआरपी बढ़ाने के नुस्खों में धर्म, आस्था एवं भक्ति भावना का दोहन भी अहम हो गया है। इस कीर्तन की हद तो तब हो जाती है जब चैनल तथाकथित धर्म गुरुओं के माध्यम से किसी धार्मिक विषय पर बेतुकी चर्चा और बहस करते अधार्मिक होते चले जाते हैं। इसी बीच एसएमएस के माध्यम से दर्शकों की प्रतिक्रिया भी मांगी जाती है कि कितने प्रतिशत भक्त दर्शक किस बाबा या स्वामी की बातों से सहमत है। मीडिया यह किस तरह की जागरुकता फैला रही है? जो बुद्धिजीवियों के बीच चिंता का विषय बनी हुई है।
एक तरफ तो हमारे महापुरुषों ने समाज में फैली इन रूढ़ियों एवं अंधविश्वासों को दूर करने में अपना जीवन न्यौछावर कर दिया वहीं मीडिया उनकी कुर्बानियों को संजोने के बजाय फिर से समाज में तंत्र-मंत्र को बढ़ाने का भरपूर प्रयास कर रही है। यदि बिना कार्य किये ही इन चमत्कारी यंत्रों को अपनाकर कोई व्यक्ति या समाज अपने मनोवांछित इच्छा की प्रप्ति कर लेता तो कृष्ण का अर्जुन को गीता का उपदेश न देना पड़ता।
media is also change itself with time and going on with time etc.......so we can see amany changing...
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