शनिवार, 30 नवंबर 2013

पेड न्यूज मतलब मैच फिक्सिंग

पेड न्यूज मतलब मैच फिक्सिंग
मीडिया आधुनिक समाज का आईना है और यह भी सर्वविदित है कि आईना झूठ नहीं बोलता है परंतु आजकल इस आईने के बदले तेवर देखने को मिल रहे हैं। पेड न्यूज के द्वारा प्रतिबिम्ब ऐसे बनाए जा रहे हैं कि जिसमें स्वार्थ को विज्ञापित करके पाठकों को सम्मोहित किया जाता है। क्रिकेट के मैच फिक्सिंग की तरह ही पेड न्यूज पत्रकारिता के लिए संकट बनकर उभरा है।
पेड न्यूज वह खबर है जो धन देकर प्रकाषित और प्रसारित कराई गयी हो। यह प्रायः राजनैतिक चुनावों में देखने को मिल रहा है जब प्रत्याषी अपना चुनावी खर्च कम दिखाने के लिए विज्ञापन के बदले खबर छपवाते हैं। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि खबर विज्ञापन के बदले ज्यादा विष्वसनीय होती है।
पहले न्यूज को प्वाइंट आॅफ व्यू माना जाता था किन्तु वैष्वीकरण के इस दौर में न्यूज मात्र प्वाइंट आॅफ व्यू नहीं रही बल्कि प्रोडक्ट भी बन गई है। इसीलिए इसमें वही सब बुराइयां स्थापित होने लगी जो प्रोडक्ट में होती है। उत्पाद का सम्बंध व्यापार से है और व्यापार के लिए आवष्यक है व्यावहारिकता न कि सैद्धांतिकता। इसी वजह से मीडिया की दुनिया में प्रयोज्यता को वरीयता दी जाती है। मूलतः प्रयोज्यता संचार को जन-जन तक अग्रेशित करने के संदर्भ में प्रयुक्त की जाती है। किन्तु आजकल जिस प्रकार षब्दों के सही अर्थ विलुप्त हो रहे है उसी का परिणाम है कि प्रयोज्यता का अर्थ भी मीडिया में अर्थोपार्जन हो गया है।
भारत में पत्रकारिता की संकल्पना जनहित को को मूल में रखकर की गई थी स्वतंत्रता संग्राम में मीडिया की भूमिका की गहन छानबीन से इस बात की पुश्टि होती है कि पत्रकारिता किसी व्यक्तिगत स्वार्थपूर्ति से परे भारत की आजादी और उसके नवनिर्माण का समर्पित थी। इसी वजह से तत्कालीन समाचार पत्र-पत्रिकाओं की बागडोर स्वतंत्रता सेनानियों के हाथ में थी। परंतु आज पत्रकारिता का परिदृष्य पूरी तरह से बदल चुका है यह मिषन से प्रोफेषन हो चुकी है। प्रिन्ट हो या इलेक्ट्राॅनिक मीडिया दोनों ही कारपोरेट कल्चर में पूरी तरह से रंग चुके हैं। समाचार के तत्वों में प्रमुख है सत्यता और विष्वसनीयता। इससे समझौता करने का मतलब है कि मीडिया अपने मूल कर्तव्यों से विमुख हो रहा है।

सम्पादकों को या तो नाम मात्र का बना दिया गया है या फिर उस स्थान पर प्रबंधकों या पत्र-स्वामियों ने कब्जा कर लिया है। जिनका एकमात्र उद्देष्य मुनाफाखोरी है। मुनाफाखोरी  में आयकर की चोरी आमबात है। विज्ञापन से इतर पेड न्यूज में न तो आय का लेखा-जोखा रखने की जरूरत है न ही आयकर का झंझट।
खुद वित्तमंत्री भी स्वीकार कर चुके हैं कि देष में बड़ी मात्रा में काला धन है। इस से सभी वाकिफ हैं कि यह धन किस-किस के पास है। ये ही लोग चुनाव में नोट-वोट का खेल खेलते हैं। कुछ समय पहले तक इस खेल में मतदाताओं को भौतिक रूप से लुभाया जाता रहा है किन्तु आजकल हर खेल की तरह इस खेल में भी तकनीकी बदलाव हुए। इसी वजह से नोट-वोट के खेल में मतदाताओं को मनोवैज्ञानिक रूप से भी प्रभावित करने के लिए पेड न्यूज का सहारा लिया जा रहा है। इससे बड़े लाभ की यह बात है कि इसमें काले धन का करीने से सदुपयोग किया जाता है।
किसी तात्कालिक घटना, विचार या समस्या जिसमें जन अभिरूचि विद्यमान हो, को समाचार कहा जाता है। मीडिया ही एकमात्र ऐसा स्तंभ हैै जिसकी जन-जन में साख और विष्वसनीयता बरकरार है। लेकिन जब जन पर धन को वरीयता दी जाएगी तो  लोकतंत्र के चतुर्थ स्तंभ के नाम से अलंकृत मीडिया को भी सवालिया कठघरे में खड़ा होना पड़ेगा।
मीडिया को मिली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का यह सबसे भद्दा मजाक है। पेड न्यूज ने सारी हदें पार कर दी हैं। इसी कारण दूसरों पर अंगुलि उठाने वाले मीडिया पर भी लोगों ने आरोप लगाना षुरू कर दिया है। सत्ता पक्ष हो या विपक्ष दोनों तरफ से आवाजें उठने लगी हैं कि पे्रस कौंसिल इसके लिए जरूरी कदम उठाए जिससे पेड न्यूज की समस्या का निपटारा किया जा सके।
द एडिटर्स गिल्ड आॅफ इंडिया और द इंडियन वीमेन्स प्रेस काप्र्स के द्वारा आयोजित सेमिनार ’’पेड न्यूज’’ में सीपीएम महासचिव प्रकाष करात ने पेड न्यूज को चुनाव-प्रक्रिया का उल्लंघन घोशित करने की मांग की। जिसका पुरजोर समर्थन करते हुए लोकसभा में विपक्ष की नेता सुशमा स्वराज ने कहा कि यदि चुनाव आयोग के पास इससे निपटने के लिए पर्याप्त षक्तियां नहीं हैं तो एक्ट में संषोधन के लिए संसद में बिल प्रस्तुत करना चाहिए। सत्ता पक्ष हो या विपक्ष सभी पेड न्यूज का रोना रो रहे हैं लेकिन मजेदार तथ्य इस सेमिनार में चुनाव आयुक्त एस. वाई. कुरैषी ने उजागर किया कि पेड न्यूज के बारे में कई दलों ने बताया है परंतु किसी ने औपचारिक रूप से कोई षिकायत दर्ज नहीं की है।
पेड न्यूज पर लगाम लगाना इतना आसान नहीं है। इस बात की पुश्टि करते प्रसार भारती की अध्यक्ष मृणाल पांडे का कहना है कि सम्पादक अकेले उत्तरदायी नहीं है कि समाचार पत्र में क्या प्रकाषित हो रहा है क्योंकि प्रत्येक संस्करण विभिन्न स्थानों से प्रकाषित होते हैं। बी.जी. वर्गीज का कहना है कि ’’ मीडिया अब चतुर्थ स्तम्भ नहीं रहा, बल्कि यह प्रथम स्तम्भ है। मीडिया सबसे षक्तिषाली बन चुका है।’’ वर्गीज का विचार आज की मीडिया के प्रत्येक क्षेत्र में बढ़ते हस्तक्षेप से जगजाहिर करता है।
                                        



मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

समाचार एजेंसिया

प्रेस ट्रस्‍ट ऑफ इंडिया-
          भारत की सबसे बड़ी समाचार एजेंसी, प्रेस ट्रस्‍ट ऑफ इंडिया लि. पीटीआई भारतीय समाचारपत्रों की बिना मुनाफे के चलाई जाने वाली सहकारी संस्‍था है, जिसका दायित्‍व अपने ग्राहकों को कुशल एवं निष्‍पक्ष समाचार उपलब्‍ध कराना है। इसकी समाचार 27 अगस्‍त, 1947 को हुई और इसने 1 फरवरी, 1949 से अपनी सेवाएं आरंभ कर दीं।
पीटीआई अंग्रेजी और हिंदी में अपनी समाचार सेवाएं दे रही है। भाषा एजेंसी की हिंदी समाचार सेवा है। पीटीआई के ग्राहकों के 500 समाचार पत्र और बीसियों विदेशी समाचार संगठन शामिल हैं। भारत में सभी और विदेशों में लंदन से बीबीसी सहित कई प्रमुख टी.वी./रेडियो चैनल पीटीआई की सेवाएं ले रहे हैं।
पीटीआई सेवाएं प्रदान करने के माध्‍यम में उपग्रह ट्रांसमिशन शामिल हैं और पीटीआई की अपनी स्‍वयं की उपग्रह डिलीवरी प्रणाली है। इनसेट उपग्रह पर इस ट्रांसपोंडर के जरिए, पीटीआई की सेवाएं पूरे देश में इसके ग्राहकों तक सीधे पहुंचती हैं। अधिकाधिक उपभोक्‍ताओं द्वारा उपग्रह से साम्रगी प्राप्‍त करने का विकल्‍प अपनाया गया है। पीटीआई ने के. यू. बैंड पर उपग्रह ट्रांसमीशन भी प्रारंभ किया है जो उपभोक्‍ताओं को सस्‍ते और छोटे आकार के उपग्रह रिसीवरों पर समाचार उपलब्‍ध कर देता है।
पीटीआई से इंटरनेट पर भी संपर्क किया जा सकता है एजेंसी की समाचार सेवाएं इसकी वेबसाइट http.//www.ptinews.com. पर भी उपलब्‍ध है और इसके ग्राहक इंटरनेट के जरिए भी एजेंसी की सेवाएं प्राप्‍त कर सकते हैं।
फोटो सर्विस उपग्रह के जरिए उपलब्‍ध है और साथ ही डायल करके भी फोटो मंगवाए जा सकते हैं। एजेंसी अब अपने फोटोग्राफ्स का अभिलेखागार बना रही है। इन ऑनलाइन अभिलेखागार के चालू हो जाने के बाद एजेंसी की पुरानी फाइलों से वर्ष 1986 तक के वे फोटो भी मिल सकेंगे जब फोटो सेवा आरंभ हुई थी।
पीटीआई में करीब 1300 कर्मचारी हैं, जिनमें से 350 पत्रकार हैं। इस एजेंसी के देशभर में 80 कार्यालय हैं तथ पेइचिंग, बैंकॉक, कोलम्‍बों, ढाका, दुबई, इस्‍लामाबाद, काठमांडू, लंदन, मास्‍को, न्‍यूयॉर्क और वाशिगंटन सहित दुनिया के प्रमुख शहरों में इस एजेंसी के विदेश संवाददाता हैं। इनके अलावा देश में करीब 350 स्ट्रिंगर इसे खबरें भेजते हैं, जबकि 20 अंशकालिक संवाददाता विश्‍व भर से खबरें भेजते हैं। एजेंसी का देश भर में करीब 200 फोटो स्ट्रिंगर्स का नेटवर्क भी है।
समाचार और फोटो सेवाओं के अतिरिक्‍त, एजेंसी की अन्‍य सेवाओं में, फीचरों का मेलर पैकेज, विज्ञान सेवा, आर्थिक सेवा और डाटा इंडिया तथा स्‍क्रीन आधारित न्‍यूज-स्‍कैन और स्‍टॉक-स्‍कैन सेवाएं शामिल हैं। पीटीआई का एक टेलीविजन विंग, पीटीआई - टीवी भी है, जो मांग पर निगमों के लिए वृत्तचित्र बनाता है।
एजेंसी एक समझौते के तहत एसोसिएटिड प्रेस (.पी) और एजेंसी फ्रांस प्रेस (. एफ. पी.) के समाचार भारत में वितरित करती है। इसी प्रकार का समझौता एसोसिएटिड प्रेस के साथ उसकी फोटो सेवा और अंतरराष्‍ट्रीय व्‍यावसायिक सूचना के वितरण के लिए भी है। पीटीआई सिंगापुर में पंजीकृत कंपनी एशिया पल्‍स इंटरनेशनल में भी साझीदार है। इस कंपनी का गठन एशियाई देशों में आर्थिक विकास और व्‍यापारिक अवसरों के बारे में ऑनलाइन डाटा बैंक उपलब्‍ध कराने के लिए पीटीआई तथा पांच अन्‍य एशियाई मीडिया संगठन ने किया है। पीटीआई एशियानेट में भी भागीदार है, जो एशिया प्रशांत क्षेत्र की 12 समाचार एजेंसियों के बीच निगम और सरकारी प्रेस विज्ञप्तियों के वितरण के लिए एक सहकारी व्‍यवस्‍था है।
पीटीआई गुटनिरपेक्ष देशों के समाचार पूल और एशिया प्रशांत समाचार एजेंसी संगठन का प्रमुख भागीदार है। यह एजेंसी द्विपक्षीय समाचार विनियम व्‍यवस्‍था के तहत एशिया, अफ्रीका, यूरोप और लैटिन अमेरिकी देशों की कई समाचार एजेंसियों से समाचारों का आदान - प्रदान करती है।


    यूनाइ‍टेड न्‍यूज़ ऑफ इंडिया-
       यूनाइटेड न्‍यूज़ ऑफ इंडिया की स्‍थापना 1956 के कंपनी कानून के तहत 19 दिसम्‍बर, 1959 को हुई। इसने 21 मार्च, 1961 से कुशलतापूर्वक कार्य करना शुरू कर दिया। पिछले चार दशकों में यूएनआई, भारत में एक प्रमुख समाचार ब्‍यूरो के रूप में विकसित हुई है। इसने समाचार इकट्ठा करने और समाचार देने जैसे प्रमुख क्षेत्र में अपेक्षित स्‍पर्धा भावना को बनाए रखा है।
यूनाइटेड न्‍यूज़ ऑफ इंडिया की नए पन की भावना तब स्‍पष्‍ट हुई, जब इसने 1982 में पूर्ण रूप से हिंदी तार सेवा 'यूनीवार्ता' का शुभारंभ किया और भारत की पहली हिंदी समाचार एजेंसी बन गई। इसी दशक में इसने फोटो सेवा तथा ग्राफिक्‍स सेवा का भी आरंभ किया। इसने 90 के आरंभ में सबसे पहली उर्दू सेवा की शुरूआत की।
इस समय इस समाचार एजेंसी के लगभग 719 ग्राहक हैं। भारत में इसके 71 कार्यालय हैं तथा 391 पत्रकारों सहित लगभग 975 कर्मचारी हैं। देश के प्रमुख शहरों में इसके अपने संवाददाता हैं। इनमें लगभग 305 स्ट्रिंगर्स हैं जो अन्‍य प्रमुख शहरों से रिपोर्ट भेजते हैं। पूरे देश में नेटवर्क होने के कारण यूएनआई देश के सभी क्षेत्रों में घटनाओं की जानकारी दे पाने में सक्षम है।
यूएनआई के संवाददाता वाशिंगटन, न्‍यू यॉर्क, लंदन, मॉस्‍को, दुबई, इस्‍लामाबाद, काठमांडू कोलंबो, ढाका, सिंगापुर, टोरंटो (कनाडा), सिडनी (ऑस्‍ट्रेलिया), बैंकॉक (थाइलैंड), और काबुल (अफगानिस्‍तान) में हैं।
यूएनआई विश्‍व की सबसे बड़ी सूचना कंपनी रॉयटर के माध्‍यम से विश्‍व के समाचार वितरित करती है। इसके अलावा इसने चीन की सिन्‍हुआ, रूस की आरआईए नोवस्‍ती, बंगलादेश की यूएनबी, तुर्की की अनादोलू, संयुक्‍त अरब अमीरात की डब्‍ल्‍यूएएम, बहरीन की जीएनए, कुवैत की केयूएनए, ओमान की ओएनए, कतर की क्‍यूएनए तथा ताइवान की सीएनए के साथ सूचना आदान प्रदान का तालमेल किया हुआ है।
यूएनआई की फोटो सेवा, यूरोपियन प्रेसफोटो एजेंसी ईपीए और रायटर से मिलने वाले 60 अंतरराष्‍ट्रीय चित्रों समेत लगभग 200 फोटो प्रतिदिन वितरित करती है। इसकी ग्राफिक्‍स सेवा 5 से 6 ग्राफिक्‍स प्रतिदिन उपलब्‍ध कराती है। इस समय यूनएआई के देशव्‍यापी नेटवर्क में 27 फोटोग्राफर और इतने ही फोटोस्ट्रिंगर हैं जो यूएनआई की लगभग 200 फोटो प्रतिदिन वाली दैनिक रिपोर्ट के लिए दिन रात काम करते हैं। अपने 46 वर्ष के जीवनकाल में यूएनआई ने समाचारों के द्रुतगति से स्‍टीक कवरेज के लिए प्रतिस्‍पर्द्धा करने में सक्षम प्रतिद्वन्‍द्वी की ख्‍याति प्राप्ति की है।
समाचार संग्रह और प्रसार की आवश्‍यकताओं के अनुरूप आधुनिक प्रौद्योगिकी अपनाने में यूएनआई हमेशा अग्रणी रही है। अपने आधुनिकीकरण अभियान के तहत इसने पूरे देश में अपने कार्यालयों का कम्‍प्‍यूटरीकरण कर दिया है। यूएनआई के राष्‍ट्रव्‍यापी टेलीप्रिंटर नेटवर्क का विस्‍तार 50 बॉड से 300 बॉड डाटा सर्किट्स से 10,00,000 किलोमीटर से अधिक करने से इसके कार्यक्षेत्र में अप्रत्‍याशित वृद्धि हुई। इसमें एक बार फिर बड़ा बदलाव अस्‍थाई तौर पर तब आया जब, 1,200 बॉड स्‍पीड डॉटा सर्किट्स और 56 केबीपीएस की गति से समाचारों के राष्‍ट्रव्‍यापी वितरण के लिए उपग्रह प्रौद्योगिकी का और उन्‍नत इस्‍तेमाल शुरू कर गया। वीसेट प्रौद्योगिकी के इस्‍तेमाल से देशभर के सभी ग्राहकों का एक साथ बिना किसी देरी के समाचार उपलब्‍ध हो सकते हैं। इस प्रणाली के तहत चित्र भी उपलब्‍ध कराए जा सकेंगे।
यूएनआई, पहली समाचार एजेंसी है जो इंटरनेट पर हिन्‍दी तथा अंग्रेजी में समाचार, फोटो सहित उपलब्‍ध कराती है। इसके ग्राहक लेख तथा फोटो यूएनआई
www.uniindia.com (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं) तथा यूनीवार्ता वेबसाइट से क्रमश: www.univarta.com (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं) से डाउनलोड कर सकते हैं।
गुटनिरपेक्ष समाचार नेटवर्क -
       गुटनिरपेक्ष समाचार नेटवर्क (एनएनएन) नया इंटरनेट आधारित समाचार और फोटो आदान - प्रदान की व्‍यवस्‍था गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सदस्‍य देशों की समाचार एजेंसियों की व्‍यवस्‍था है। प्रेस ट्रस्‍ट ऑफ इंडिया सहित गुट निरपेक्ष समाचार एजेंसियों के समाचार और फोटो एनएनएन वेबसाइट पर http://www.namnewsnetwork.org (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं) पर अपलोड किए जाते हैं, ताकि सभी ऑनलाइन उपलब्‍ध हो सकें। मलेशिया की समाचार एजेंसी बरनामा इस समय कुआलालंपुर से इस वेबसाइट का संचालन कर रही है।
अप्रैल, 2006 से कार्यरत एनएनएन की औपचारिक शुरूआत मलेशिया के सूचना मंत्री जैनुद्दीन मेदिन ने कुआलालंपुर में 27 जून 2006 को की थी। एनएनएन ने गुटनिरपेक्ष समाचार एजेंसियों के पूल (एनएएनपी) का स्‍थान लिया है, जिसने पिछले 30 वर्ष गुटनिरपेक्ष देशों के बीच समाचार आदान प्रदान व्‍यवस्‍था के रूप में काम किया है। सस्‍ता और विश्‍वसनीय संस्‍था माध्‍यम इंटरनेट से एनएनएन गुट निरपेक्ष विश्‍व के 116 सदस्‍यों को सतत सूचना प्रवाह जारी रखेगा।
एनएएनपी को एनएनएन से बदलने का फैसला कुआलालंपुर में नवंबर 2005 में गुट निरपेक्ष देशों के सूचना मंत्रियों के सम्‍मेलन में किया गया था। बैठक में महसूस किया गया कि सदस्‍य देशों का समर्थन घटने से पूल ने अपनी गति खो दी है और इसे नई व्‍यवस्‍था से पुनर्जीवित किया जाना चाहिए, अगर जरूरी हो तो नए रूप में, ताकि आगे बढ़ा जा सके।
एनएएनएपी की स्‍थापना 1976 में सदस्‍य देशें के बीच समाचारों के आदान-प्रदान के लिए की गई थी। अपने 30 वर्ष के कार्यकाल में इसने गुट निरपेक्ष विश्‍व में समाचारों का प्रवाह सुधारने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई। जिस समय संचार लागत बहुत अधिक थी, एनएएनएपी ने सदस्‍य समाचार एजेंसियों को चैनल में भागीदारी का अवसर उपलब्‍ध कराया जिससे गुट निरपेक्ष आंदोलन के सभी देशों को समाचार आदान प्रदान का साझा नेटवर्क सुनिश्चित हो सके। समाचारों का आदान-प्रदान अंग्रेजी, फ्रेंच, स्‍पेनी और अरबी भाषा में होता था।

शुक्रवार, 4 मार्च 2011

कीर्तन करती पत्रकारिता

मीडिया ने शुरुआत से ही देश के राजनीतिक आर्थिक सामाजिक संास्कृतिक धार्मिक उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। जहां मीडिया अपनी प्रकृति के अनुसार लाभ पहंुचा कर आम जन मानस को विकास की अग्रसर कर रहा है वहीं पिछले एक दशक से मीडिया चरित्र में व्यापक परिवर्तन देखने को मिला है। आज इस तरह से मीडिया धर्म को एक हथकन्डे के रूप में अपना रहा है उससे आम जनता के मनोंवृत्ति पर गहरा प्रभाव पड रहा है। जिस तरह मध्य युग में नाथ सिद्धों के यहां तंत्र-मंत्र की असंवैधानिक रूढ़ियां विद्यमान थी और आम जनता में जंतर-मंतर का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता था उसी तरह वर्तमान मीडिया में भी भक्ति, साधना, आस्था, राशिफल, भविष्यफल, टैरोकार्ड का बोलबाला हर तरफ नजर रहा है। हनुमान कवच, धनलक्ष्मी यंत्र, श्री यंत्र, सिद्ध अंगूठी, नजर सुरक्षा कवच आदि माध्यमों से जो मायावी संसार गढ़ने का प्रयास किया जा रहा है वह भ्रम पैदा कर रहा है। खासकर देखा जाए तो खबरिया चैनल इस मामले में कोसों दूर निकल चुके है।  राष्ट्रीय चैनलों से लेकर क्षेत्रीय स्थानीय चैनल तक दर्शकों को अपने मोहपाश में बांध लेने को आतुर नजर रहे हैं।
            कहीं हनुमान के नाम पर तो कहीं शिव और काली के नाम पर लोगों को कीर्तन कराते नजर रहे हैं। ज्योतिष, भविष्यवाणी योगासन एवं घटनाओं को रहस्यमय बनाकर दिखाना मीडिया की प्रवृति बन गई है। कहीं तीन देि‍वयां तो कहीं जटाधारी बाबा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते नजर रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि टीआरपी बढ़ाने के नुस्खों में धर्म, आस्था एवं भक्ति भावना का दोहन भी अहम हो गया है। इस कीर्तन की हद तो तब हो जाती है जब चैनल तथाकथित धर्म गुरुओं के माध्यम से किसी धार्मिक विषय पर बेतुकी चर्चा और बहस करते अधार्मिक होते चले जाते हैं। इसी बीच एसएमएस के माध्यम से दर्शकों की प्रतिक्रिया भी मांगी जाती है कि कितने प्रतिशत भक्त दर्शक किस बाबा या स्वामी की बातों से सहमत है। मीडिया यह किस तरह की जागरुकता फैला रही है? जो बुद्धिजीवियों के बीच चिंता का विषय बनी हुई है।
एक तरफ तो हमारे महापुरुषों ने समाज में फैली इन रूढ़ियों एवं अंधविश्वासों को दूर करने में अपना जीवन न्यौछावर कर दिया वहीं मीडिया उनकी कुर्बानियों को संजोने के बजाय फिर से समाज में तंत्र-मंत्र को बढ़ाने का भरपूर प्रयास कर रही है। यदि बिना कार्य किये ही इन चमत्कारी यंत्रों को अपनाकर कोई व्यक्ति या समाज अपने मनोवांछित इच्छा की प्रप्ति कर लेता तो कृष्ण का अर्जुन को गीता का उपदेश देना पड़ता।